"साहिल की तरफ़ कश्ती ले चल, तूफ़ाँ के थपेड़े सहना क्या, तू आप ही अपना माँझी बन, मौजों के सहारे बहना क्या. ये बीच सफ़र में कैसे थकन, मंज़िल भी जब तेरी दूर नहीं, सोते हुए राही जाग ज़रा, ख़्वाबों में उलझकर रहना क्या"
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@RajatSharmaLive डूबे हुए को हमने बिठाया था अपनी कश्ती और,फिर कश्ती का बोझ कहकर,हमें ही उतार दिया.
@RajatSharmaLive "दल्लों की तरफ़ लट्ठ ले चल, झूठों के थपेड़े सहना क्या, तू आप ही अपना एंकर बन, नल्लो से खबरें सुनना क्या. बिकते मुल्क में कैसे थकन, महंगाई बेरोजगारी भी दूर नहीं, नेताओं का पीछा छोड़ ज़रा, मजहब में उलझकर रहना क्या"
@RajatSharmaLive लोग महंगाई में उलझकर रह गये हैं
@RajatSharmaLive हर टारगेट योद्धा को समर्पित