लाहौर नहीं देना था यार!🥺 ----------------------------- वक्त से दिन और रात वक्त से कल और आज आदमी को चाहिए वक्त से डर कर रहे कौन जाने किस घड़ी वक्त का बदले मिजाज। लाहौर के प्रसिद्ध गुमटी बाजार में लाला बुलाकी शाह (भलाकी, बल्लकी शाह) की हवेली आज भी कायम है। कहते हैं कि 1929 में जब लाला जी ने यह हवेली बनाई थी तब इसके सफेद पत्थरों की चमक से पूरा गुमटी बाजार रोशन रहता था। कहते हैं कि गुमटी बाजार हिंदू व्यापारियों का गढ़ था,जिसकी गलियों के नाम आज भी गली कालीमाता, कूचा बेलीराम, कूचा हरजिस राय और कूचा हनुमान गली के नाम से ही जाने जाते हैं । कहते हैं कि लाहौर में तब ऐसा कोई इंसान नहीं था जिसे लाला बुलाकी शाह ने कर्ज न दिया हो। कहते हैं कि लाहौर में आज भी पैसे की ऐंठन दिखाने वाले को "बड़े बुलाकी शाह हो गए हो" के नाम का ही ताना देते हैं। कहते हैं कि लाला एक दफा बीमार पड़े तो उन्हें देखने वाला कोई नहीं गया; क्योंकि सब ने इनसे कर्ज ले रखा था। बाद में जब कम कर्ज लेने वाले उनकी हाल पुरसी को गए तो लाला ने मुनीम से उनकी रकम पूछ कर कर्ज माफ कर दिया। कहते हैं कि यह देख कर जब बड़े कर्जदार लाला की हाल पुरसी को गए तो लाला ने बड़ा दरवाजा बंद करवा दिया और बिस्तर पर पड़े पड़े पहलवानों को कर्ज वसूल करने का आदेश दे दिया। लोग बाप बाप कर भागे। कहते हैं कि उन्नीस तीस के दशक में अकेले बुलाकी शाह के तीन तीन बैंक लाहौर में थे। कहते हैं कि बुलाकी शाह की हवेली की नक्काशी देखने हुजूम को बलपूर्वक हटाना पड़ता था। कहते हैं कि बुलाकी शाह की पुरानी ढहती हवेली की नक्काशी में आज भी "ओम" दिखता है और उसी 'ओम' के नीचे मोमिनों की दुकानें निर्विकार भाव से चलती हैं। कहते हैं कि विभाजन की त्रासदी में बुलाकी शाह की हवेली कुल तीन महीने तक लुटती रही थी। कहते हैं कि बुलाकी शाह के 44 कमरे वाली इस हवेली में जो परिवार रहता है उनकी औकात हवेली की मरम्मत की नहीं है। कहते हैं कि ईश्वर होता है और सब देखता है। सत्य व्यास @satyavyas11
@Hindinama2 वक्त कब बदल जाऐ कोई नहीं जानता....😀😀😀