हमें अपने सद्ग्रंथों से पता चलता है कि पहले केवल एक आदि सनातन धर्म था। उस समय सतयुग में मानव समाज शास्त्रानुकूल भक्ति साधना करता था। उस समय पाँच वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा सूक्ष्मवेद शास्त्र थे। जिसमें से चार वेद ब्रह्मा जी को मिले, जिनमें सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान नहीं था। परम अक्षर ब्रह्म सत्ययुग में लीला करने के लिए शिशु रूप धारण करके आए। बड़े होकर सूक्ष्मवेद का प्रचार किया। तब तक उस समय के ऋषियों ने चारों वेदों वाला ज्ञान पढ़ लिया था। सूक्ष्मवेद वाला कुछ ज्ञान चारों वेदों में न होने के कारण उसको गलत माना। इसलिए सूक्ष्मवेद को धीरे-धीरे छोड़ दिया, परंतु लगभग एक लाख वर्ष तक सत्ययुग में शास्त्रानुकूल भक्ति की गई। इसके पश्चात् शास्त्रविधि त्यागकर मनमाना आचरण प्रारंभ हो गया। पढ़िये हिंदू साहेबान नहीं समझे गीता, वेद, पुराण से संबंधित यह लेख और जानिए कैसे हम अनेक धर्मों में बंटे और कैसे शास्त्रविरुद्ध पूजा प्रारंभ हुई?: bit.ly/3vHrLpq
@SatlokChannel Satguru provides true spiritual knowledge (Tatvagyan). Tatvadarshi Great Saint Rampal Ji Maharaj has untangled spiritual facts from Holy Scriptures. Take refuge in Him.
@SatlokChannel #हमारीभीसुनो_बुद्धिमानहिंदुओं अनेकों मनमाने और शास्त्रविरुद्ध आचरण बताकर धर्मगुरु स्वयं जो सच्चा सन्त सिद्ध करते हैं जबकि वे सभी आचरण या साधनाएँ जैसे मूर्तिपूजा, श्राद्ध, व्रत आदि जो शास्त्रों में नहीं दिए गए हैं वे व्यर्थ हैं और गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में प्रमाण है
@SatlokChannel #HinduBhai_Dhokhe_Mein हमारे धर्म गुरु कहते हैं विधि का विधान नहीं बदला जा सकता जबकि सन्त रामपाल जी महाराज ने यह करके दिखाया है इसकी गवाही वेद देते हैं। Sant Rampal Ji Maharaj
@SatlokChannel गीता अध्याय 16 श्लोक 23 में कहा है कि शास्त्र विधि को त्यागकर जो साधक मनमाना आचरण करते हैं उनको ना तो कोई सुख होता है, ना कोई सिद्धि प्राप्त होती है तथा ना ही उनकी गति अर्थात मोक्ष होता है।