जो सामान था गैर ज़रूरी, वह तो रह गया, बाक़ी जिसे बचाना था, सैलाब में बह गया जब हुए रुबरु तो न कह सका दो शब्द भी, फ़ोन पर जब बोला तो बोलता ही रह गया कल शाम जिसे ज़रूरी था पहुंचना कहीं पर, वह फिर रात भी रुका और आज सुबह घर गया ~ विपिन बिहारी
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